कच्ची नीम की निंबौरी, सावन अभी न अइयो रे
मेरा शहर गया होरी, सावन अभी न अइयो रे
कर्ज़ा सेठ वसूलेगा, गाली घर आकर देगा
कड़के बीजुरी निगोरी, सावन अभी न अइयो रे
गब्बर लूट रहा बस्ती, ठाकुर मार रहा मस्ती
है क्वाँरी छोटी छोरी, सावन अभी न अइयो रे
चूल्हा बुझा पड़ा कब का, रोजा रोज़ाना सबका
फूटी काँच की कटोरी, सावन अभी न अइयो रे
छप्पर नया बना लें हम, भर लें सभी दरारें हम
मेघा करे न बरजोरी, सावन अभी न अइयो रे
खुरपी ले आए धनिया, जग जाएँ गोबर-झुनिया
हँसिया ढूँढ़ रही गोरी, सावन अभी न अइयो रे (105)
1 टिप्पणी:
guruji namaskar
prastut kavita me aapne gaon ki gruhni ke dil ki udasi ko yu batya hai ki mere man me bhi awsad ke baadal cha gaye.saath hi barso ka bisara gaon aksmat yad aa gaya.man khichne laga.laga koi pukaar raha ho.
naman
vinita sinha
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