मूल्यों को शूली मिली विश्वासों को जेल
ऋषि की तो आँखें गईं राजसुता का खेल
संस्कृति का दीपक बुझा हुई वर्तिका क्षीण
पश्चिम-मूषक ने पिया बिंदु-बिंदु सब तेल
अंधेरे के सींखचों में बंदी है चाँद
तारों के फल तोड़ता राहू चला गुलेल
रावण की नगरी बना आज राम का देश
कानूनों को कुचलती अपराधों की रेल
दूषित वे ही कर रहे ऊषा का कौमार्य
लोकतंत्र की रोशनी जिनकी बनी रखेल
कुर्सी के जबसे उगे पैंने - पैंने सींग
बहुत मरखनी हो गई डालो इसे नकेल (89)
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