मंचों को छोड़ो सड़कों पे उतर आओ
ये मुजरे छोड़ो अब नया तेवर गाओ
वे तो हमेशा छीनते रहे हैं रोटी
उठो, हक़ हासिल करो, हाथ मत फैलाओ
सबसे बड़ा देव है महनतकश आदमी
अंधी कुटी में आस्था के दीप जलाओ
बिखर न जाय यह टुकड़ा-टुकड़ा आसमान
लरजते शीशे को टूटने से बचाओ
कौन रोकेगा तुम्हें ‘निराला’ बनने से
मिमियाना छोड़ो तुम शेर हो गुर्राओ (87)
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