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रविवार, 3 मई 2009

नाग की बाँबी खुली है आइए साहब

नाग की बाँबी खुली है आइए साहब
भर कटोरा दूध का भी लाइए साहब

रोटियों की फ़िक्र क्या है ? कुर्सियों से लो
गोलियाँ बँटने लगी हैं खाइए साहब

टोपियों के हर महल के द्वार छोटे हैं
और झुककर और झुककर जाइए साहब

मानते हैं उम्र सारी हो गई रोते
गीत उनके ही करम के गाइए साहब

बिछ नहीं सकते अगर तुम पायदानों में
फिर क़यामत आज बनकर छाइए साहब (82)

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