गाँव, घर, नगर-नगर भूमि की पुकार
ताल, सर, लहर-लहर भूमि की पुकार
सींचें जो खेत में बूँद - बूँद गात
और ना पिएँ ज़हर भूमि की पुकार
नींव में ग़रीब-रक्त और ना चुए
साँझ प्रात दोपहर भूमि की पुकार
भूख के उरोज पर सेठ या मुनीम
और ना धरें नज़र भूमि की पुकार
और की हरे न धूप, छाँव बरगदी
दूर-दूर फैल कर , भूमि की पुकार
नींद की ग़ज़ल नहीं आज मित्रवर!
जागृति के छंद भर भूमि की पुकार (72)
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