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शनिवार, 20 दिसंबर 2008

आज आओ दूर तक ढेले चलाएँगे



कुछ सुनाओ आज तो बातें सितारों की
क्या सुनाएँ आप को बातें सितारों की ?

पाँव के नीचे धरा में तो दरारें हैं
सूझती हैं आप को बातें सितारों की

होटलों के सिर टंके उनके सितारे तो
हम खिलाते पेट को बातें सितारों की

तारिकाओं-तारकों के चित्र फिल्मों में
बाँटते हैं देश को बातें सितारों की

कुर्सियों का राग है सारे सदन में, यों
हो रहीं बस बात को बातें सितारों की

आज आओ दूर तक ढेले चलाएँगे
मत करो जिद , छोड़ दो बातें सितारों की     [६७]

जितना चरित्रहीन जो उतना महान है !

जितना चरित्रहीन जो उतना महान है !
 

 

 

कुछ लोग जेब में उसे धर घूम रहे हैं
सबसे विशाल विश्व में जो संविधान है

 



हर बार हर चुनाव में बस सिद्ध यह हुआ
जितना चरित्रहीन जो उतना महान है

 


ये वोट के समीकरण समझा न आदमी
कुर्सी की ओर हर शहीद का रुझान है

 


वे सूत्रधार संप्रदाय-युद्ध के बने
बस एकता - अखंडता जिनका बयान है

 


गूँगा तमाशबीन बना क्यों खड़ा है तू ?
तेरी कलम , कलम नहीं , युग की ज़बान है     [६६]

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

कालकूट पी कौन जिया है ?




कालकूट पी कौन जिया है ?

 


कालकूट पी कौन जिया है, गली-गली में चर्चा है
चर्चा का मुँह कहाँ सिया है, गली-गली में चर्चा है

 

 


लाठी ने टोपी वालों से, गोली ने कुछ भूखों से
जासूसों का काम लिया है, गली-गली में चर्चा है

 

 


देसी खद्दर के कुर्तों ने , जिनकी मुट्ठी में कुर्सी
झुक कर उन्हें प्रणाम किया है, गली-गली में चर्चा है

 

 


बिजली वाले हर बादल को, पूंजीवादी सूरज ने
नक्सलपंथी नाम दिया है,  गली-गली में चर्चा है

 

 


एक मसीहा ने प्यासों के, एक विदुर के हाथों से
पानी एक गिलास पिया है,गली-गली में चर्चा है
            [६५]

क़त्ल इन्होंने करवाए हैं


क़त्ल इन्होंने करवाए हैं


 

 

क़त्ल इन्होंने करवाए हैं
गीत अहिंसा के गाये हैं

 

 

सारे मोती चुने इन्होंने
हमने तो आँसू पाए हैं

 

 

दोपहरी इनकी रखेल है
अपने तो साथी साए हैं

 

 

जल्लादों ने प्रह्लादों को
विष के प्याले भिजवाए हैं

 

 

अश्वमेध वालों से कह दो
अब की तो लव - कुश आए हैं

 

 

नयनों में लौ-लपट झूमती
मुट्ठी में ज्वाला लाए हैं          [६४]

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

भूखे पेटो का अनुशासन बेमानी है

भूखे पेटो का अनुशासन बेमानी है



अम्मृत के आश्वासन देना नादानी है
सूखे होठों की दवा घूँट भर पानी है


कितनी कुटियों में नहीं हुई दीया-बाती
क्यों भला हवेली बिजली की दीवानी है?


रग्घू की माँ  तो चिथडों से गुदडी सीती
शोषण की साड़ी में पर दिल्ली रानी है


दाएँ-बाएँ बोल कवायद करने वालो !
भूखे पेटों का अनुशासन बेमानी है


धरती की चीखों से पीड़ा से आज तलक
अंधी-बहरी कुर्सी बिल्कुल अनजानी है             ६३

अब तो उलटना नकाब होगा

अब तो उलटना नकाब होगा

 

अब तो उलटना नकाब होगा
जुर्मों का उनके हिसाब होगा

हमारा खूने-जिगर कब तलक
उन्हीं का जामे-शराब होगा

जिन्होनें छीनी हमारी रोटी
अब उनका खा़ना ख़राब होगा

कुदाल-खुरपी औ' फावडा-हल
अब नूर होगा शबाब होगा

चुएगी गंगा हमारे सिर से
सारा पसीना गुलाब होगा            ६२

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

राजधानी

 राजधानी



अंधी ह' राजधानी, बहरी ह' राजधानी
फुंकार मारती है, ज़हरी ह' राजधानी


 
जो खोज मोतियों की, करने चले यहाँ पर
डूबे, बचे नहीं वे, गहरी ह' राजधानी


 
नदियाँ बहीं लहू की, इतिहास बताता है
सदियों से झील बनी, ठहरी ह' राजधानी


 
भीगा न आंसुओं से , आँचल नगरवधू का
हर साल रंग बदले , फहरी ह'  राजधानी


 
थामे नहीं थमेगी , इस बार बाढ़ आई 
बन बिजलियाँ भले ही , घहरी ह' राजधानी


 
कुछ लोग पेट पकड़े, डमरू बजा रहे हैं
डम-डम डिगा-डिगा , बम-लहरी ह' राजधानी        [६१]

 



- ऋषभ देव शर्मा