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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

छंद छंद गीत का प्रान हो गया

छंद छंद गीत का प्रान हो गया
शब्द शब्द अग्नि का बान हो गया

धुंध चीर कर उगा रक्त सूर्य जो
वेद औ' सनातन कुरान हो गया

बहरों की बातें विधान पर बहस
राजपद गोलघर दुकान हो गया

सुनते हैं अंधों की भीड़ पर अब  
लाठियां चलें प्रावधान हो गया

दिल्ली बाज़ार में ठोकरें पड़ीं
माथे पर काला निशान हो गया

घेर कर फसल घिरे बाज़-टिड्डियां
होरी गुलेल ले मचान हो गया

झील में विष घुला राजनीति का
नीलकंठ गाँव वह  जवान हो गया   [131]

8/1/1982 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

अग्निहोत्र का दीप बरेगा

अग्निहोत्र का दीप बरेगा
ज्वालाओं का मंत्र वरेगा

उगें अधेरे, लेकिन सूरज
नहीं मरा है, नहीं मरेगा

 रीती पड़ी परात धरा की
तपी भगीरथ पुनः भरेगा

राम बटोही सिंहासन तज
वन प्रांतर का वरण करेगा

मूर्छित पड़ी हुई है पीढ़ी
तू ही शब्द-सुधा बरसेगा!        [130]

1/1/1982