अग्निहोत्र का दीप बरेगा
ज्वालाओं का मंत्र वरेगा
उगें अधेरे, लेकिन सूरज
नहीं मरा है, नहीं मरेगा
रीती पड़ी परात धरा की
तपी भगीरथ पुनः भरेगा
राम बटोही सिंहासन तज
वन प्रांतर का वरण करेगा
मूर्छित पड़ी हुई है पीढ़ी
तू ही शब्द-सुधा बरसेगा! [130]
1/1/1982
ज्वालाओं का मंत्र वरेगा
उगें अधेरे, लेकिन सूरज
नहीं मरा है, नहीं मरेगा
रीती पड़ी परात धरा की
तपी भगीरथ पुनः भरेगा
राम बटोही सिंहासन तज
वन प्रांतर का वरण करेगा
मूर्छित पड़ी हुई है पीढ़ी
तू ही शब्द-सुधा बरसेगा! [130]
1/1/1982
2 टिप्पणियां:
अब तो सूरज तले भी अंधेरा दिखाई दे रहा है :(
अछूते प्रतीक ,शब्द और भाव की सुघड़ बुनावट ,ऐसे ही लिखते रहिये
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