दर्द से हमने जबाड़े कस लिए
सिर्फ अभिनय जानकर तुम हँस दिए
हैं पडी बँधुआ हमारी पीढ़ियाँ
रौंदिए या चुटकियों में मसलिए
पालकी को सात पुश्तें ढ़ो रहीं
पद-प्रहारों में तुम्हारे हम जिए
यह तुम्हारे पाप का अंतिम चरण
रक्त की इस कीच में तुम धँस लिए
चीखने से कुछ नहीं होगा ; गले
अब हमारी उँगलियों में फँस लिए [129 ]
19 /7 /1982
सिर्फ अभिनय जानकर तुम हँस दिए
हैं पडी बँधुआ हमारी पीढ़ियाँ
रौंदिए या चुटकियों में मसलिए
पालकी को सात पुश्तें ढ़ो रहीं
पद-प्रहारों में तुम्हारे हम जिए
यह तुम्हारे पाप का अंतिम चरण
रक्त की इस कीच में तुम धँस लिए
चीखने से कुछ नहीं होगा ; गले
अब हमारी उँगलियों में फँस लिए [129 ]
19 /7 /1982
5 टिप्पणियां:
तीन दशक गुज़र गए यही सोचते हुए कि ‘यह तुम्हारे पाप का अंतिम चरण’ है पर हाय रे पाप... यह तो बढ़ता जी जा रहा है :(
बढिया तेवरी जो तीन दशक बाद भी ताज़ा है। यह प्रमाण है कालजयी कविता का॥
@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
दरअसल तीन दशक पहले घड़ा उनका भरा था जो तब सत्ता में थे. फूटा भी था.
अब उनका भर रहा है जो अब सत्ता में है. चुनाव में फूटेगा भी.
पर यह नहीं हो सकता की एक बार फूटा तो अगली बार घड़ा गढ़ना और भरना बंद हो जाएगा.
शोषक और शोषित का यह संघर्ष तो शाश्वत है. दुनिया देख चुकी है कि सत्ता पाकर शोषित भी शोषक हो जाता है.
पर कविता तो शोषित की ही पक्षधर है इसलिए संघर्ष से मुँह नहीं न मोड़ सकती.
कविता कालजयी नहीं. हाँ, वर्ग संघर्ष अवश्य शाश्वत है....खास करके भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में.
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बहुत बढ़िया ..हर दौड़ के लिए प्रासंगिक .
♥
आदरणीय ऋषभ जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत श्रेष्ठ रचना है …
दर्द से हमने जबाड़े कस लिए
सिर्फ अभिनय जानकर तुम हँस दिए
हैं पडी बँधुआ हमारी पीढ़ियाँ
रौंदिए या चुटकियों में मसलिए
वाह वाऽऽह !
यह तुम्हारे पाप का अंतिम चरण
रक्त की इस कीच में तुम धँस लिए
वाकई पुनः वही स्थितियां राजनीतिक पटल पर हैं …
आदरणीय चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी जैसे गुणी के कहने के बाद कुछ शेष नहीं बचता …
कृपया बताएं, तेवरी क्या है , ग़ज़ल का ही रूप है अथवा कुछ और ? छंद - साधक होने के नाते मुझे जानने-समझने में गहरी दिलचस्पी होने के कारण पूछ रहा हूं …
समय निकाल कर कभी मेरे यहां भी पधारें ।
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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