देशद्रोहियों के हैं पहरे देश में
ज़हरों के सागर हैं गहरे देश में
लालकिले पर आज़ादी विकलांग है
प्यासी आवाजों के बहरे देश में
एक तिरंगा है गुंबज पर; सड़कों पर
रंग बिरंगे झंडे फहरे देश में
अंधे के कंधे पर लंगड़ा भाई है
यही यात्रा होती ठहरे देश में
आँगन आँगन दीवारें हैं, खाई हैं
नई फसल अब कैसे लहरे देश में? [128 ]
03 /12 /1981
ज़हरों के सागर हैं गहरे देश में
लालकिले पर आज़ादी विकलांग है
प्यासी आवाजों के बहरे देश में
एक तिरंगा है गुंबज पर; सड़कों पर
रंग बिरंगे झंडे फहरे देश में
अंधे के कंधे पर लंगड़ा भाई है
यही यात्रा होती ठहरे देश में
आँगन आँगन दीवारें हैं, खाई हैं
नई फसल अब कैसे लहरे देश में? [128 ]
03 /12 /1981