फ़ॉलोअर

शनिवार, 3 जून 2023

दर्द भले कितना ही सहना

दर्द भले कितना ही सहना

झूठों को मत सच्चे कहना


कुर्सी तो आनी जानी है

अपराधी की ओर न रहना


वोटों की खातिर सैंया जी

साँप पालते, सुन री बहना


वे मायावी मगरमच्छ हैं

आँसू में उनके मत बहना


यह जो ताशमहल रचते हो

निश्चित है इसका तो ढहना


लाक्षागृह तो बना रहे हो

पड़े न तुमको इसमें दहना


सुनो, न्याय का शासन केवल

लोकतंत्र का सच्चा गहना

शुक्रवार, 2 जून 2023

महफिल में जयगान हो रहा लुच्चों का

 महफिल में जयगान हो रहा लुच्चों का

अभिनंदन-सम्मान हो रहा लुच्चों का


जनता भूखी बैठी जंतर मंतर पर 

मुगलाई जलपान हो रहा लुच्चों का


न्याय माँगने वालों को ठोकर मिलतीं

सत्ता में उत्थान हो रहा लुच्चों का


भुजबल धनबल छलबल की माया पसरी

स्वेच्छा से मतदान हो रहा लुच्चों का


वोट-नोट की पापमोचनी गंगा में 

निर्लज कुंभ नहान हो रहा लुच्चों का


प्रश्न पूछने वालों के मुँह सिले गए

विज्ञापन अभियान हो रहा लुच्चों का


नुक्कड़ नुक्कड़ बात चली है गली गली

अनुचर आज विधान हो रहा लुच्चों का

                             (2 जून, 2023)


गुरुवार, 1 जून 2023

हाँ, सोने के बँगले में, सोते हैं राजाजी

हाँ, सोने के बँगले में, सोते हैं राजाजी

पर, चाँदी के जँगले में, रोते हैं राजाजी


नारद जी लेकर आए हैं खबर बहुत पक्की

धरती पर साकार ब्रह्म,  होते हैं राजाजी 


श्वेत झूठ की वैतरणी में खूब नहाए हैं

हरिश्चंद्र के कहने को, पोते हैं राजाजी


बहू-बेटियों की इज़्ज़त से कीचक खेल रहे

कभी न पर अपना संयम, खोते हैं राजाजी


बने धर्म अधिकारी लेकर न्यायदंड स्वर्णिम

सब अपनों के पाप-करम, ढोते हैं राजाजी


वह कबीर वाली चादर मैली कर डाली है

नित्य प्रजा के आँसू से, धोते हैं राजाजी


अध्यादेशों पर नाखूनों से अक्षर लिख कर

लोकतंत्र का जप करते, तोते हैं राजाजी


दान-पुण्य करके चुनाव का अश्वमेध करते

किंतु नाश के बीज स्वयं, बोते हैं राजाजी 000

31/5/2023

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

सबका देश समान है, सबका झंडा एक

सबका देश समान है, सबका झंडा एक 

सब की धरती एक है, मन की भाषा एक 


साथ सभी मिलकर चलें, चलें प्रगति की राह 

सबके सपने एक हों, सबकी आशा एक 


साथ साथ खाएँ सभी,  सब में रोटी बाँट 

सबकी भूख समान है, और पिपासा एक 


घोल रहे जो कुएँ में, संप्रदाय की भाँग 

उन्हें खींच बाज़ार में, करें तमाशा एक 


टोपी, कुर्सी, धर्म से, ऊपर अपना देश 

राजनीति के गाल जन, जड़े तमाचा एक 


जो नक्शे को नोंचते, काटें वे नाखून 

भारतीय सब एक हैं, सबका नक्शा एक 


यह अक्षय वट देश का, सके न कोई काट 

शीश कटें, कट कट उगें, करें प्रतिज्ञा एक


#पुरानी_डायरी  से 

(नई दिल्ली : 8 अगस्त, 1984)

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

धुंध, कुहासा, सर्द हवाएँ...

धुंध, कुहासा, सर्द हवाएँ, 

भीषण चीला हो जाताहै!

शाकाहारी जबड़े में भी 

हिंसक कीला हो जाता है!!


फूलों पर चलने वाले तुम, 

कड़ी चोट को क्या जानोगे?

बहुत ज़ोर की ठोकर खाकर,

तन-मन नीला हो जाता है!!


वोट डालते दम तो, भैया, 

सब कुछ ठीक-ठाक लगता है,

किंतु नतीजा आते-आते,

ऊटमटीला हो जाता है!!


अपना दल कुर्सी पाए तो, 

अपनी मिहनत की माया है।

और जीतना किसी और का, 

प्रभु की लीला हो जाता है!!


अगर मेनका नोट लुटा कर 

वोट माँगने आ जाए तो!

विश्वामित्रों के चरित्र का 

बल भी ढीला हो जाता है!!


इतने बरसों के अनुभव से, 

अब तक बस इतना सीखे हैं!

जनता लापरवाह हुई तो, 

शासन ढीला हो जाता है!!