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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

सबका देश समान है, सबका झंडा एक

सबका देश समान है, सबका झंडा एक 

सब की धरती एक है, मन की भाषा एक 


साथ सभी मिलकर चलें, चलें प्रगति की राह 

सबके सपने एक हों, सबकी आशा एक 


साथ साथ खाएँ सभी,  सब में रोटी बाँट 

सबकी भूख समान है, और पिपासा एक 


घोल रहे जो कुएँ में, संप्रदाय की भाँग 

उन्हें खींच बाज़ार में, करें तमाशा एक 


टोपी, कुर्सी, धर्म से, ऊपर अपना देश 

राजनीति के गाल जन, जड़े तमाचा एक 


जो नक्शे को नोंचते, काटें वे नाखून 

भारतीय सब एक हैं, सबका नक्शा एक 


यह अक्षय वट देश का, सके न कोई काट 

शीश कटें, कट कट उगें, करें प्रतिज्ञा एक


#पुरानी_डायरी  से 

(नई दिल्ली : 8 अगस्त, 1984)

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

धुंध, कुहासा, सर्द हवाएँ...

धुंध, कुहासा, सर्द हवाएँ, 

भीषण चीला हो जाताहै!

शाकाहारी जबड़े में भी 

हिंसक कीला हो जाता है!!


फूलों पर चलने वाले तुम, 

कड़ी चोट को क्या जानोगे?

बहुत ज़ोर की ठोकर खाकर,

तन-मन नीला हो जाता है!!


वोट डालते दम तो, भैया, 

सब कुछ ठीक-ठाक लगता है,

किंतु नतीजा आते-आते,

ऊटमटीला हो जाता है!!


अपना दल कुर्सी पाए तो, 

अपनी मिहनत की माया है।

और जीतना किसी और का, 

प्रभु की लीला हो जाता है!!


अगर मेनका नोट लुटा कर 

वोट माँगने आ जाए तो!

विश्वामित्रों के चरित्र का 

बल भी ढीला हो जाता है!!


इतने बरसों के अनुभव से, 

अब तक बस इतना सीखे हैं!

जनता लापरवाह हुई तो, 

शासन ढीला हो जाता है!!

रविवार, 27 नवंबर 2022

राजा सब नंगे होते हैं

 राजा सब नंगे होते हैं।

कहने पर पंगे होते हैं।।


शीश झुकाकर जो जय बोलें,

बंदे वे चंगे होते हैं।।


लाज शरम सिखलाने वाले

जेहन के तंगे होते हैं।।


रंग-ढंग का ठेका जिन पर,

वे खुद बेढंगे होते हैं।।


'गला काटने वाले कातिल',

मत कहना, दंगे होते हैं।।

(हैदराबाद : 27/11/2022)

गुरुवार, 24 नवंबर 2022

यह डगर कठिन है, तलवार दुधारी है

यह डगर कठिन है, तलवार दुधारी है
घात लगा कर बैठा क्रूर शिकारी है

वे भला समर्पण-श्रद्धा क्या पहचानें
उनके हाथों में  नफ़रत की आरी है

ईरान कहें या अफ़ग़ानिस्तान कहें
घर-बाहर कोड़ों की ज़द में नारी है

मुट्ठी में ले जिसने आकाश निचोड़ा 
कोमल मन लेकर वह सबसे हारी है

आदम के बेटों के पंजे शैतानी 
नई सदी की यह त्रासद लाचारी है

(हैदराबाद : 24/11 2022)

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

यह समय है झूठ का

यह समय है झूठ का, अब साँच को मत  देख!

देख मत पंचायतों को, जाँच को मत देख!!


नेपथ्य से नाटक चलाता धूर्त  निर्देशक;

तू थिरकती पुतलियों के नाच को मत देख!


हाथ उसके की सफाई को पकड़ना है अगर;

तो लहरती उँगलियों के नाच को मत देख!


आग का दरिया तिरेगी, भूमि की बेटी;

तू नज़र उस पार रख, इस आँच को मत देख!


साँस जब तक शेष है, नाचना होगा यहाँ;

पाँव में जो चुभ रहा, उस काँच को मत देख!

19/1/2020