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गुरुवार, 26 मई 2011

यह मस्ताना, वह मस्तानी, आज चली टोली दीवानी

यह मस्ताना, वह मस्तानी, आज चली टोली दीवानी
बोल मछिंदर, गोपी चंदर, मच्छी मच्छी कित्ता पानी

राज महल का राज़ खोलते, आज मदारी और जमूरे
सावधान सिंहासन-शासन, सावधान हों राजा-रानी

आज नहुष या वेण-कंस हो, नीरो-नूरजहाँ कोई हो
जनता का दरबार लगा है,  करे न कोई आनाकानी

मीनारें-कंगूरे सुन लें,       गुंबद और झरोखे गुन लें
नीवों में भारी हलचल है, कर न बैठना कुछ नादानी

बेमानी हो चुके गगन पर, लिखे रोशनी के सब नारे
अब तो सूरज नया उगाओ, सिर तक आ पहुंचा है पानी    [116 ]

29 अक्टूबर, 1981
   

गुरुवार, 19 मई 2011

अंबर ने फिर थोपा है तम, आओ दिए जलाएँ

अंबर ने फिर थोपा है तम, आओ दिए जलाएँ
हो प्रकाश का पर्व मनोरम, आओ दिए जलाएँ

आँखों में तेज़ाब ढालकर,  तकुए बहुत पिरोए
अंधी कुटिया में तनिक सनम, आओ दिए जलाएँ

बाँहों के नागों को यारो, वश में करना होगा
डुग्गी वाला आया डमडम, आओ दिए जलाएँ

चुप बैठे हैं लोग यहाँ पर, तेल कान में डाले
खूब पटाखों का हो ऊधम,आओ दिए जलाएँ

साँकल, ताले, लाकर, थैली, लक्ष्मी क़ैद जहाँ भी
मचे मुक्ति का तांडव बम-बम, आओ दिए जलाएँ  [115]

22 अक्टूबर 1981 .

सोमवार, 16 मई 2011

लपटों में जल रहा, ये अपना देश है

लपटों में जल रहा, ये अपना देश है 
नागों ने डँस लिया, ये अपना देश है 

अंबर पे उड़ रहे, धरती के ध्वज कई
 धरती पे परकटा, ये अपना देश है

रोको भले कहीं, ज़ंजीर खींचकर 
रेलों के रेले सा, ये अपना देश  है

वे माँगते हैं प्रांत, वे धर्म बदलते 
साज़िश में घिर गया, ये अपना देश है

झंडों की चिंदियाँ हैं उड़ रही जनाब 
अब सोचिए ज़रा, ये अपना देश है

जो खून कर रहे भारत के स्वप्न का
दो मौत की सज़ा, ये.अपना देश है   [114]

      17 अक्टूबर, 1981

रविवार, 15 मई 2011

जनता की अदालत लगी, इन्साफ कीजिए

जनता की अदालत लगी, इन्साफ कीजिए
संसद कटहरे में खडी, इन्साफ कीजिए

सुविधाएँ भोगते हैं वे शासन के नाम पर
भूखे से बुधिया मर गई, इन्साफ कीजिए

उनके भतीजे ले रहे हर एक लाइसेंस
इनको न रोजी मिल सकी, इन्साफ कीजिए

कुर्सी की खींचतान में गांधी की आत्मा
लोहूलुहान हो रही, इन्साफ कीजिए

सारे सफेदपोश डकैतों के वास्ते
है कौन सी सज़ा सही, इन्साफ कीजिए   [113]

                                      17 अक्टूबर , 1981