यह मस्ताना, वह मस्तानी, आज चली टोली दीवानी
बोल मछिंदर, गोपी चंदर, मच्छी मच्छी कित्ता पानी
राज महल का राज़ खोलते, आज मदारी और जमूरे
सावधान सिंहासन-शासन, सावधान हों राजा-रानी
आज नहुष या वेण-कंस हो, नीरो-नूरजहाँ कोई हो
जनता का दरबार लगा है, करे न कोई आनाकानी
मीनारें-कंगूरे सुन लें, गुंबद और झरोखे गुन लें
नीवों में भारी हलचल है, कर न बैठना कुछ नादानी
बेमानी हो चुके गगन पर, लिखे रोशनी के सब नारे
अब तो सूरज नया उगाओ, सिर तक आ पहुंचा है पानी [116 ]
29 अक्टूबर, 1981
बोल मछिंदर, गोपी चंदर, मच्छी मच्छी कित्ता पानी
राज महल का राज़ खोलते, आज मदारी और जमूरे
सावधान सिंहासन-शासन, सावधान हों राजा-रानी
आज नहुष या वेण-कंस हो, नीरो-नूरजहाँ कोई हो
जनता का दरबार लगा है, करे न कोई आनाकानी
मीनारें-कंगूरे सुन लें, गुंबद और झरोखे गुन लें
नीवों में भारी हलचल है, कर न बैठना कुछ नादानी
बेमानी हो चुके गगन पर, लिखे रोशनी के सब नारे
अब तो सूरज नया उगाओ, सिर तक आ पहुंचा है पानी [116 ]
29 अक्टूबर, 1981