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सोमवार, 16 मई 2011

लपटों में जल रहा, ये अपना देश है

लपटों में जल रहा, ये अपना देश है 
नागों ने डँस लिया, ये अपना देश है 

अंबर पे उड़ रहे, धरती के ध्वज कई
 धरती पे परकटा, ये अपना देश है

रोको भले कहीं, ज़ंजीर खींचकर 
रेलों के रेले सा, ये अपना देश  है

वे माँगते हैं प्रांत, वे धर्म बदलते 
साज़िश में घिर गया, ये अपना देश है

झंडों की चिंदियाँ हैं उड़ रही जनाब 
अब सोचिए ज़रा, ये अपना देश है

जो खून कर रहे भारत के स्वप्न का
दो मौत की सज़ा, ये.अपना देश है   [114]

      17 अक्टूबर, 1981

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

वे मांगते प्रांत, वे धर्म बदलते.... सच है कि इस देश को साजिशों ने घेर रखा है। वर्ना, कल तक जो जेल में था आज योजना आयोग का मार्गदर्शन करने बुलाया जा रह है!!!!!!!!