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सोमवार, 18 जून 2007

काव्य को अंगार कर दे, भारती


काव्य को अंगार कर दे, भारती
शब्द हों हथियार, वर दे, भारती

हों कहीं शोषण-अनय-अन्याय जो
जूझने का बल प्रखर दे, भारती

सत्य देखें, सच कहें, सच ही लिखें
सत्य, केवल सत्य स्वर दे, भारती

सब जगें, जगकर मिलें, मिलकर चलें
लेखनी में शक्ति भर दे, भारती

हो धनुष जैसी तनी हर तेवरी
तेवरों के तीक्ष्ण शर दे, भारती

हिंसा की दूकान खोलकर, बैठे ऊँचे देश

हिंसा की दूकान खोलकर, बैठे ऊँचे देश
आशंका से दबी हवाएँ, आतंकित परिवेश

अंतरिक्ष तक पहुँच गया है, युद्धों का व्यापार
राजनीति ने नक्षत्रों में, भरा घृणा-विद्वेष

गर्म हवाओं के पंखों पर, लदा हुआ बारूद
'खुसरो' कैसे घर जाएगा, रैन हुई चहुं देश

महाशक्तियाँ रचा रही हैं, सामूहिक नरमेध
हाथ बढ़ाकर अभी खींच लो, कापालिक के केश