गिर रहा फिर आज पानी
ठिर रही है राजधानी
मोड़कर जलधार भारी
दी डुबो बस्ती पुरानी
हम हुए बेघर प्रलय में
बच गए वे खानदानी
हर तरफ खारा समंदर
प्यास पानी प्यास पानी
रक्तजीवी रक्त माँगे
क्या बुढ़ापा क्या जवानी
गाँव का सिर काटकर भी
शहर की कुर्सी बचानी
बाँधकर पत्थर डुबो दी
सत्य की अंतिम निशानी
मृत्यु की लहरें उफनतीं
जाग री सोई भवानी! [108]
4/11 /2009 .