गिर रहा फिर आज पानी
ठिर रही है राजधानी
मोड़कर जलधार भारी
दी डुबो बस्ती पुरानी
हम हुए बेघर प्रलय में
बच गए वे खानदानी
हर तरफ खारा समंदर
प्यास पानी प्यास पानी
रक्तजीवी रक्त माँगे
क्या बुढ़ापा क्या जवानी
गाँव का सिर काटकर भी
शहर की कुर्सी बचानी
बाँधकर पत्थर डुबो दी
सत्य की अंतिम निशानी
मृत्यु की लहरें उफनतीं
जाग री सोई भवानी! [108]
4/11 /2009 .
10 टिप्पणियां:
हर तरफ खारा समंदर
प्यास पानी प्यास पानी
बढिया अभिव्यक्ति.. अंग्रेज़ी कहावत है- Water Water everywhere
Not a drop to drink!
और हां, यह भी सही है
रक्तजीवी रक्त माँगे
क्या बुढ़ापा क्या जवानी
यह बुढापे में पता चला :)
हम हुए बेघर प्रलय में
बच गए ये खानदानी..
अजी काहे का खानदानी .....ये साले खानदानी नहीं इस देश और समाज का खून चूसनेवाले हैं......इनसे अच्छा तो नरपिचास को भी कहा जा सकता है.....इन भ्रष्ट मंत्रियों और उद्योगपतियों को खानदानी नहीं बल्कि अब हर दिल अजीज इंसान कुकर्मी के रूप में इनको हर वक्त याद करता है.....और यही इनके सर्वनाश की शुरुआत है.....
ati sundar Rishabh jee ,
vishesh-
Bandh kar patthar dubo dee / saty kee antim nishaani
badhaai
kamal
बहुत सुंदर रचना। सोई भवानी जगाने के लिए भवानी होनी भी तो चाहिए, वो है कहां?
Word verification takleefdeh hota hai
@cmpershad
''बुढ़ापे में पता चला!''
- पर आप तो जवानों के भी बाप हैं जी.
@honesty project democracy
आपने तो बेचारे ''खानदानी'' को खोल कर धर दिया.
शुक्रिया!!
@anitakumar
प्रशंसा के किए विनम्रतापूर्वक कृतज्ञ हूँ.
वर्ड-वेरिफिकेशन गंदगी से बचने के लिए रखना पड़ा है पूर्वअनुभव से सबक लेकर.
@Kamal
जी शर्मा जी.
इसीलिए तो झूठ और बेशर्मी कुर्सियों पर काबिज़ हैं.
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ.
लोकतंत्री भीड़ में जब भाँड़ करता बदजबानी
दे दनादन वोट उसको भेज देते राजधानी
हाय रे कैसी नादानी,
बिक गये ले चाय-पानी?
वाह क्या कह दी कहानी...!!!
@ siddharth shankar tripathi
निश्चय ही लोकतंत्र की इस भारी विफलता की कुछ न कुछ ज़िम्मेदारी कलमकारों के सिर भी है!
टिप्पणी के लिए आभारी हूँ .
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