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रविवार, 18 जून 2023

मार्च आँधी और आँधी जून है

मार्च आँधी और आँधी जून है

कैक्टसी वन, सूखती जैतून है


प्रेम पर पत्थर बरसते मृत्यु तक

यह तुम्हारे देश का क़ानून है 


मुक्ति की चर्चा भला कैसे करें

राजमुद्रांकित हरिक मज़मून है


दूध में धुल कर सफ़ेदी में पुते

चेहरे हैं, होंठ पर तो ख़ून है


सत्य कहने की ज़रा हिम्मत करो!

गरदनों पर बाज़ का नाख़ून है

(24/9/1981) 

पुरानी डायरी

रविवार, 11 जून 2023

क्यों यह गुंबद बनवाई है, बतलाओ मुग़ले आज़म

क्यों यह गुंबद बनवाई है, बतलाओ मुग़ले आज़म

किसकी बेटी दफ़नाई है, बतलाओ मुग़ले आज़म


बत्तिस-बत्तिस टुकड़े करके फ्रिज़ में बर्फ जमाई थी

किस दिवार में चिनवाई है, बतलाओ मुग़ले आज़म


राजनीति के गलियारों में उड़ती रूहें पूछ रहीं  

लाश कहाँ पर धुनवाई है, बतलाओ मुग़ले आज़म


जिसका चीर हरण करके बेखौफ दरिंदे नाच रहे

क्यों ना उसकी सुनवाई है, बतलाओ मुग़ले आज़म


शहर शहर जो आग लगी है हर पर्वत हर घाटी में

किसकी ख़ातिर सुलगाई है, बतलाओ मुग़ले आज़म 


भाग्य विधाता की अर्थी पर डाल रहे जो इज़्ज़त से

चादर किससे बुनवाई है, बतलाओ मुगले आज़म 

                            (11 जून, 2023)

शुक्रवार, 9 जून 2023

दिल्ली से उठते हैं बादल और हवा में बह जाते हैं

दिल्ली से उठते हैं बादल और हवा में बह जाते हैं

रेत नहाते हुए परिंदे गगन ताकते रह जाते हैं


झुलस-झुलस कर एक-एक कर सारे पीपल ठूँठ हो रहे

भीषण लूओं को ये बरगद जाने कैसे सह जाते हैं


दरबारों में दीन जनों की सुनवाई की जगह नहीं है

फिर भी वे कुर्सी के आगे सिसक-सिसक कर कह जाते हैं


गाँव घेर कर बड़ी हवेली बड़े चौधरी बना रहे हैं

घास-फूस के छप्पर वाले घर तो खुद ही ढह जाते हैं


ओझा-गुनी बड़े आए थे लंबे-चौड़े वादे लेकर

कठिन सवालों के आते ही यह जाते हैं, वह जाते हैं


अम्मा ने कितना समझाया मिलकर रहना ही ताकत है

राजनीति के दावानल में नाजुक रिश्ते दह जाते हैं

(9 जून, 2023)

गुरुवार, 8 जून 2023

सत्य हुआ सत्ता का अनुचर, हर गंगे

सत्य हुआ सत्ता का अनुचर, हर गंगे

न्याय-व्याय की बातें मत कर, हर गंगे


नेत्र तीसरा बंद पड़ा है, वैसे तो

कंकर-कंकर में है शंकर, हर गंगे


राजधानियाँ भंग चढ़ाकर सोई हैं

खुले घूमते गुंडे-तस्कर, हर गंगे


राहु-केतु का ग्रास बन रही है जनता

पुण्य कमा लो वोट डालकर, हर गंगे


चार सीट दिल्ली की जिसकी मुट्ठी में

बच जाएगा सात खून कर, हर गंगे


अब सड़कों पर मार रहे वे, रौंद रहे 

कब तक देखें पत्थर बनकर, हर गंगे


ढहते पुल, भिड़तीं रेलें, चलती गोली

जाँच हो रही, चिंता मत कर, हर गंगे


लोकतंत्र की छाती पर से बूट पहन

गुज़र रहा राजा का लश्कर, हर गंगे


खुद लेने प्रतिकार देवियो! अब उतरो

ले जाए ना असुर उठाकर, हर गंगे

                     (8 जून, 2023)


शनिवार, 3 जून 2023

दर्द भले कितना ही सहना

दर्द भले कितना ही सहना

झूठों को मत सच्चे कहना


कुर्सी तो आनी जानी है

अपराधी की ओर न रहना


वोटों की खातिर सैंया जी

साँप पालते, सुन री बहना


वे मायावी मगरमच्छ हैं

आँसू में उनके मत बहना


यह जो ताशमहल रचते हो

निश्चित है इसका तो ढहना


लाक्षागृह तो बना रहे हो

पड़े न तुमको इसमें दहना


सुनो, न्याय का शासन केवल

लोकतंत्र का सच्चा गहना