शोलों से भरी हुई शब्दों की झोली हो
यह समय समर का है, बम-बम की बोली हो
कुर्सी के होंठों पर जनता का लोहू है
माथे पर चाहे ही चंदन हो, रोली हो
संसदी बिटौरे में वोटों के उपले हैं
जाने कब आग लगे ,जाने कब होली हो
कुर्ते का, टोपी का कोई विश्वास नहीं
क्या पता कि वर्दी (खादी) में ,चोरों की टोली हो
फूलों के कंधों पर बंदूकें लटका दो
शायद माली पर भी खंजर या गोली हो (96)
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