पुरखों ने कर्ज लिया, पीढ़ी को भरने दो
अपराधी हाथों की, जासूसी करने दो
कर रहा हवा दूषित, भर रहा नसों में विष
मत तक्षक को ऐसे, उन्मुक्त विचरने दो
आया था लोकतंत्र, वर्षों से सुनते हैं
छेदों से भरी-भरी, नौका यह तरने दो
यातना-शिविर जिसने, यह शहर बनाया है
पापों का धर्मपिता , मुख आज उघरने दो
जनगण के प्रहरी बन, सड़कों पर निकलो तुम
लो लक्ष्य बुर्जियों के, द्रोही सब मरने दो [107]
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