जितना है खुशपोश पलँग
उतना ही बेहोष पलँग
जागा सुन उद्घोष पलँग
सह न सका आक्रोश पलँग
निर्दोषों का खून हुआ
साक्षी है खामोश पलँग
खाटों को गाली बकता
मय पीकर मदहोश पलँग
जिसके माथे मुकुट बँधे
भरे उसे आगोश पलँग
मुखिया आदमखोरों का
कब करता संतोष पलँग
साफ बरी होता मढ़कर
औरों के सिर दोष पलँग
यार ! हथौड़ों से तोड़ें
अपराधों का कोष पलँग (76)
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