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रविवार, 3 मई 2009

रो रही है बाँझ धरती , मेह बरसो रे

रो रही है बाँझ धरती , मेह बरसो रे
प्रात ऊसर, साँझ परती, मेह बरसो रे

सूर्य की सारी बही में धूपिया अक्षर
अब दुपहरी है अखरती , मेह बरसो रे

नागफनियाँ हैं सिपाही , खींच लें आँचल
लाजवंती आज डरती , मेह बरसो रे

राजधानी भी दिखाती रेत का दर्पण
हिरनिया ले प्यास मरती , मेह बरसो रे

रावणों की वाटिका में भूमिजा सीता
शीश अपने आग धरती , मेह बरसो रे (94)

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