दर्द भले कितना ही सहना
झूठों को मत सच्चे कहना
कुर्सी तो आनी जानी है
अपराधी की ओर न रहना
वोटों की खातिर सैंया जी
साँप पालते, सुन री बहना
वे मायावी मगरमच्छ हैं
आँसू में उनके मत बहना
यह जो ताशमहल रचते हो
निश्चित है इसका तो ढहना
लाक्षागृह तो बना रहे हो
पड़े न तुमको इसमें दहना
सुनो, न्याय का शासन केवल
लोकतंत्र का सच्चा गहना
1 टिप्पणी:
दर्द भले कितना ही सहना, वाह! बहुत सुन्दर कविता सर जी।
एक टिप्पणी भेजें