गूँगों के गाँव में अंधों का राज है
चिड़िया दबोचता पजों में बाज़ है
कमज़ोर हाथ वे पतवार खे रहे
लहरों में डोलता इनका जहाज़ है
लो चल पडी हवा छाती को चीरती
मौसम ने आज फिर बदला मिज़ाज है
अंबर में फिर कहीं बिजली चमक उठी
तांडव के राग में य' किसका साज़ है
गिद्धों की मच गई हर ओर चीत्कार
लगता है गिर रही बरगद प' गाज है [123 ]
10 /11 /1981
चिड़िया दबोचता पजों में बाज़ है
कमज़ोर हाथ वे पतवार खे रहे
लहरों में डोलता इनका जहाज़ है
लो चल पडी हवा छाती को चीरती
मौसम ने आज फिर बदला मिज़ाज है
अंबर में फिर कहीं बिजली चमक उठी
तांडव के राग में य' किसका साज़ है
गिद्धों की मच गई हर ओर चीत्कार
लगता है गिर रही बरगद प' गाज है [123 ]
10 /11 /1981
3 टिप्पणियां:
बरगद बूढ़ा हो चला तो गाज गिरना ही है :)
"गूँगों के गाँव में अंधों का राज है"
कई तेवरियां पढ़ीं। वही पुराने तेवर, वही रचनात्मकता देखकर अच्छा लगा।
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