गन्ने की पोर में विष कौन भर गया
जिसने भी रस पिया पीते ही मर गया
कोल्हू में आ गया कर्जा उतारने
बस रह गया वहीं वापस न घर गया
बोगी में लादकर कुछ लोग चल दिए
पौ फटते काफिला मिल के नगर गया
चंपा के हाथ में हाँसी दरांतियाँ
अचपल को पलकटी देकर किधर गया
अब और तान कर कंकड़ न फेंकिए
लहरों के शोर से तालाब भर गया [122 ]
10 /11 /1981
जिसने भी रस पिया पीते ही मर गया
कोल्हू में आ गया कर्जा उतारने
बस रह गया वहीं वापस न घर गया
बोगी में लादकर कुछ लोग चल दिए
पौ फटते काफिला मिल के नगर गया
चंपा के हाथ में हाँसी दरांतियाँ
अचपल को पलकटी देकर किधर गया
अब और तान कर कंकड़ न फेंकिए
लहरों के शोर से तालाब भर गया [122 ]
10 /11 /1981
1 टिप्पणी:
कोल्हू का बैल चाहे जितने चक्कर लगा लें, रह तो वहीं जाता है... उसका जीवन तो कर्ज़ तले दबा है मरते दम तक॥
एक टिप्पणी भेजें