आप कितने पाप लाए
आज तक गिनने न आए
झील खारी हो गई है
आप हैं जब से नहाए
आप थे पत्थर, सुमन ने
व्यर्थ ही आँसू बहाए
आपके होठों हमारा
खून है, छुटने न पाए
आप अब संन्यास ले लें
आग घर में लग न जाए [119]
6 /11 /1981
आज तक गिनने न आए
झील खारी हो गई है
आप हैं जब से नहाए
आप थे पत्थर, सुमन ने
व्यर्थ ही आँसू बहाए
आपके होठों हमारा
खून है, छुटने न पाए
आप अब संन्यास ले लें
आग घर में लग न जाए [119]
6 /11 /1981
1 टिप्पणी:
बढिया तेवरी सर जी।
हम तो संन्यास लिए बैठे है
घर में आग का इंतेज़ार किए बैठे हैं :)
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