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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

क़त्ल इन्होंने करवाए हैं


क़त्ल इन्होंने करवाए हैं


 

 

क़त्ल इन्होंने करवाए हैं
गीत अहिंसा के गाये हैं

 

 

सारे मोती चुने इन्होंने
हमने तो आँसू पाए हैं

 

 

दोपहरी इनकी रखेल है
अपने तो साथी साए हैं

 

 

जल्लादों ने प्रह्लादों को
विष के प्याले भिजवाए हैं

 

 

अश्वमेध वालों से कह दो
अब की तो लव - कुश आए हैं

 

 

नयनों में लौ-लपट झूमती
मुट्ठी में ज्वाला लाए हैं          [६४]

2 टिप्‍पणियां:

cmpershad ने कहा…

जल्लादों ने प्रह्लादों को
विष के प्याले भिजवाए हैं
>बहुत ओज की तेवरी और समसामिक भी। बधाई स्वीकारें।

प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह ने कहा…

पक्तियों की जितनी तारीफ की जाये कम होगी।
महाशक्ति