फ़ॉलोअर

शनिवार, 24 सितंबर 2011

दर्द से हमने जबाड़े कस लिए

दर्द से हमने जबाड़े कस लिए
सिर्फ अभिनय जानकर तुम हँस दिए

हैं पडी बँधुआ हमारी पीढ़ियाँ
रौंदिए या चुटकियों में मसलिए

पालकी को सात पुश्तें ढ़ो रहीं
पद-प्रहारों में तुम्हारे हम  जिए

यह तुम्हारे पाप का अंतिम चरण
रक्त की इस कीच में तुम धँस लिए

चीखने से कुछ नहीं होगा ; गले
अब हमारी उँगलियों में फँस लिए      [129 ]

19 /7 /1982  

बुधवार, 24 अगस्त 2011

देशद्रोहियों के हैं पहरे देश में

देशद्रोहियों के हैं पहरे देश में
ज़हरों के सागर हैं गहरे देश में

लालकिले पर आज़ादी विकलांग है
प्यासी आवाजों के बहरे देश में

एक तिरंगा है गुंबज पर; सड़कों पर
रंग बिरंगे झंडे फहरे देश में

अंधे के कंधे पर लंगड़ा भाई है
यही यात्रा होती ठहरे देश में

आँगन आँगन दीवारें हैं, खाई हैं
नई फसल अब कैसे लहरे देश में?    [128 ]

03 /12 /1981  

रविवार, 31 जुलाई 2011

युधिष्ठिरी-यात्रा के नग हैं

युधिष्ठिरी-यात्रा के नग हैं
व्रण-छालों से छाए पग हैं

रोती रहे न्याय की पुस्तक
कुर्सी के क़ानून अलग हैं

बाज़ों के पंजे घातक, पर
बागी आज युयुत्सु विहाग हैं

तूफानी धाराएँ मचलीं
कागज़ की नावें डगमग हैं

शंखनाद गूँजा, मंदिर की
दीवारों के कान सजग हैं     [127]

20 नवंबर 1981

घर बगिया खलिहान सजग हैं

घर बगिया खलिहान सजग हैं
दीवारों के कान सजग हैं

चुग न सकोगे मेरी फसलें
जब तक खड़े मचान सजग हैं

शीश महल के स्वप्न बिखरते
कच्चे सभी मकान सजग हैं

चक्र व्यूह शोषण के टूटें
तीखे तीर कमान सजग हैं

भाग्य विधाता! अधिनायक! सुन;
जन गण के जय गान सजग हैं!!    [126]

20 नवंबर 1981  

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

कल धमाके में मरा जो, कौन था? पूछा जभी

'कल धमाके में मरा जो , कौन था?'  पूछा जभी
यों सुबह बोली सहम कर, 'एक भोला आदमी'

हो गया साबित बहुत हल्का सभी के सामने
यार! जब सच की तुला में आज तोला आदमी

भर दिया बारूद तुमने खाल में उसकी स्वयं
क्यों शिकायत यदि पटाखा और गोला आदमी

एक कोने से मसर्रत, एक कोने से रमा
देखते युग की हथेली पर फफोला आदमी

हर शिरा में साँप पाए, आँत में बिच्छू मिले
धर्म के कपडे हटा जब चीर खोला आदमी

रोटियाँ तो मिल न पाईं  आपकी बंदूक से
और कब तक खा सकेगा गर्म शोला आदमी     [125]