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रविवार, 31 जुलाई 2011

युधिष्ठिरी-यात्रा के नग हैं

युधिष्ठिरी-यात्रा के नग हैं
व्रण-छालों से छाए पग हैं

रोती रहे न्याय की पुस्तक
कुर्सी के क़ानून अलग हैं

बाज़ों के पंजे घातक, पर
बागी आज युयुत्सु विहाग हैं

तूफानी धाराएँ मचलीं
कागज़ की नावें डगमग हैं

शंखनाद गूँजा, मंदिर की
दीवारों के कान सजग हैं     [127]

20 नवंबर 1981

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सच है, कुर्सी के कानून अलग हैं और सदा वही सही रहे भी हैं:(