घर बगिया खलिहान सजग हैं
दीवारों के कान सजग हैं
चुग न सकोगे मेरी फसलें
जब तक खड़े मचान सजग हैं
शीश महल के स्वप्न बिखरते
कच्चे सभी मकान सजग हैं
चक्र व्यूह शोषण के टूटें
तीखे तीर कमान सजग हैं
भाग्य विधाता! अधिनायक! सुन;
जन गण के जय गान सजग हैं!! [126]
20 नवंबर 1981
दीवारों के कान सजग हैं
चुग न सकोगे मेरी फसलें
जब तक खड़े मचान सजग हैं
शीश महल के स्वप्न बिखरते
कच्चे सभी मकान सजग हैं
चक्र व्यूह शोषण के टूटें
तीखे तीर कमान सजग हैं
भाग्य विधाता! अधिनायक! सुन;
जन गण के जय गान सजग हैं!! [126]
20 नवंबर 1981
1 टिप्पणी:
धीरे धीरे बोल/ दीवारों के कान सजग है ॥
एक टिप्पणी भेजें