हो गया है देखिए कितना कमीना आदमी
यह घड़ा है देखिए चिकना कमीना आदमी
लाल नीली पगड़ियाँ औ' धवलवर्णी टोपियाँ
ओढ़, चूनर छीनता फ़ितना कमीना आदमी
बालकों का खून पीता, औरतों को नोचता
आदमी को लूटता इतना कमीना आदमी
डाकखाने खा रहे यूँ चिट्ठियों को, बेशरम
दोस्त जासूसी करें, लिखना - कमीना आदमी
हर सड़क को हाथ में खंजर थमाना ही पड़ा
दूसरा कोई नहीं जितना कमीना आदमी [124]
09 /07 /1982
1 टिप्पणी:
‘बालकों का खून पीता, औरतों को नोचता
आदमी को लूटता इतना कमीना आदमी’
उस कमीने आदमी के सीने में दिल नहीं है... बस... खून की पिपासा का पिशाच बहा है आदमी॥
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