गिरी-पड़ी का यार मुकंदा
कहने को सरदार मुकंदा
जाने कब से भाँज रहा है
लकड़ी की तलवार मुकंदा
निर्णायक क्षण में जन-गण के
खुद बनता हथियार मुकंदा
बाहर-बाहर हँसी-ठिठोली
भीतर हा-हाकार मुकंदा
लोग बहे जाते बहाव में
पर थामे पतवार मुकंदा
दगाबाज़ दोरंगी दुनिया
केवल पक्का यार मुकंदा
अच्छे लोगों की इज़्ज़त का
सच्चा पहरेदार मुकंदा
नंगा राजा देख चीखता
आदत से लाचार मुकंदा
नहीं झुनझुनों से बहलेगा
जब लेगा प्रतिकार मुकंदा
तख्ते-ताउस वालो! सुन लो
पलटेगा सरकार मुकंदा.[109]
4/7/2004
4 टिप्पणियां:
नंगा राजा देख चीखता
आदत से लाचार मुकंदा
आखिर वो वोट-दिन का ही तो सुल्तान होता है ना :)
@cmpershad
दिल्ली का सरदार मुकंदा!!!
.
सब का पालनहार मुकंदा ....
.
कहाँ थे यार अबतक ....???
मज़ा आ गया सुबह सुबह आपको पढ़ कर ! फालो कर रहा हूँ !
शुभकामनायें !
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