लाइयेधुंध है घर में उजाला लाइये
रोशनी का इक दुशाला लाइये
केचुओं की भीड़ आँगन में बढ़ी
आदमी अब रीढ़ वाला लाइये
जम गया है मॉम सारी देह में
गर्म फौलादी निवाला लाइये
जूझने का जुल्म से संकल्प दे
आज ऐसी पाठशाला लाइये
(स्रोत: ऋषभ देव शर्मा, तरकश प्रथम संस्करण १९९६, तेवरी प्रकाशन खतौली, पृष्ठ 16)
2 टिप्पणियां:
आप की यह रचना चोरी कर ली गई है,नारद पर रजिस्टर्ड भी करवाया हैकिसी लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी नामक चोर ने। और नारद की अव्यवस्था देखिए कि एक ही चिट्ठे को ३-३ बार पंजीकृत किया हुआ है।तुरंत एक्शन लें।
बहुत उम्दा रचना. बधाई.
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