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शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

रोज़ सबेरे चिड़िया गाकर मुझे इशारा करती है!

रोज़ सबेरे चिड़िया गाकर मुझे इशारा करती है!
'चुप रहने से मरना बेहतर' ख़ूब पुकारा करती है!!

राजा के दो सींग, पता है यों तो सारी दुनिया को;
भोली परजा किंतु आरती रोज़ उतारा करती है!

वे कहते हैं - हमने घर-घर सोना-चाँदी बरसाया;
पगली एक भिखारिन हँसकर उन्हें निहारा करती है!

जाने किस दिन इन गलियों में उस दाता का फेरा हो;
पाँच बरस से वह घर-आँगन रोज़ बुहारा करती है!

कभी हमारी बस्ती से भी होकर गुज़रो, बड़े मियाँ!
भूखे बच्चों की इक टोली पत्थर मारा करती है!!

10 अक्टूबर, 2022

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

धुंध, कुहासा, सर्द हवाएँ, भीषण चीला हो जाता है!

 धुंध, कुहासा, सर्द हवाएँ, 

भीषण चीला हो जाता है!

शाकाहारी जबड़े में भी 

हिंसक कीला हो जाता है!!


फूलों पर चलने वाले तुम, 

कड़ी चोट को क्या जानोगे?

बहुत ज़ोर की ठोकर खाकर,

तन-मन नीला हो जाता है!!


वोट डालते दम तो, भैया, 

सब कुछ ठीक-ठाक लगता है,

किंतु नतीजा आते-आते,

ऊटमटीला हो जाता है!!


अपना दल कुर्सी पाए तो, 

अपनी मिहनत की माया है।

और जीतना किसी और का, 

प्रभु की लीला हो जाता है!!


अगर मेनका नोट लुटा कर 

वोट माँगने आ जाए तो!

विश्वामित्रों के चरित्र का 

बल भी ढीला हो जाता है!!


इतने बरसों के अनुभव से, 

अब तक बस इतना सीखे हैं!

जनता लापरवाह हुई तो, 

शासन ढीला हो जाता है!!


✍️ 5/12/2022 : हैदराबाद

(प्रवीण प्रणव की प्रेरणा से)

शनिवार, 30 अगस्त 2025

हम तनिक सा हिल लें, उन्हें तकलीफ़ होती है

हम तनिक सा हिल लें,
उन्हें तकलीफ़ होती है
ज़रा हम ग़ैर से मिल लें,
उन्हें तकलीफ़ होती है

हमारे बोलने-खाने,
पहनने-सोच पर पहरे
चलो हम होंठ ही सिल लें,
उन्हें तकलीफ़ होती है

उन्हें फागुन नहीं भाता,
न सावन ही सुहाता है
कहो, हम कब-कहाँ खिल लें,
उन्हें तकलीफ़ होती है

मुखौटा बन चुका जिनके,
जटिल अस्तित्व का हिस्सा
तनिक सी छाल भी छिल लें,
उन्हें तकलीफ़ होती है

समंदर से सितारों तक,
उन्हीं की हुक्मरानी है
मगर हम-तुम तनिक तिल लें,
उन्हें तकलीफ़ होती है 000

(हैदराबाद: 31 जुलाई, 2024. )