है उमस, है घुटन घोर परिवेश में
वे पवन-राग गाते फिरें देश में
वे सदा ही रहें युद्ध के वेश में
हम न आएँ कभी किंतु आवेश में
'रोम' के नाश को एक 'नीरो' रहा
आज अनगिन मिलें खद्दरी भेष में
दोस्त के व्यंग्य की दोमुखी धार है
काटती सूत्र सब एक लवलेश में
नित्य नूतन रहें और रमणीय वे
हम बदलते रहें रोज़ अवशेष में
हम अड़े रह गए आचरण में पड़े
वे कुशल हो गए किंतु उपदेश में
मूक भाषा नयन की पढ़ो तो पढ़ो
और क्या हम कहें आज संदेश में [110]
वे पवन-राग गाते फिरें देश में
वे सदा ही रहें युद्ध के वेश में
हम न आएँ कभी किंतु आवेश में
'रोम' के नाश को एक 'नीरो' रहा
आज अनगिन मिलें खद्दरी भेष में
दोस्त के व्यंग्य की दोमुखी धार है
काटती सूत्र सब एक लवलेश में
नित्य नूतन रहें और रमणीय वे
हम बदलते रहें रोज़ अवशेष में
हम अड़े रह गए आचरण में पड़े
वे कुशल हो गए किंतु उपदेश में
मूक भाषा नयन की पढ़ो तो पढ़ो
और क्या हम कहें आज संदेश में [110]