१
लो दिवाली की बधाई , मित्रवर !
लो दिवाली की मिठाई ,मित्रवर !
एक दीपक के लिए मुहताज घर
आपने बस्ती जलाई , मित्रवर !
जल चुका रावण, न बुझती है चिता
आग यह कैसी लगाई , मित्रवर !
चौखटों की छाँह तक बीमार है
क्यों हवा ऐसी चलाई , मित्रवर !
अब रहो तैयार लुटने के लिए ,
रोशनी तुमने चुराई , मित्रवर !
हर अँधेरी जेल तोडी जायगी ,
यह कसम युग ने उठाई , मित्रवर !
२
रोशनी जल की परी है , दीपमाला है
रोशनी गिरवीं धरी है , दीपमाला है
कुर्सियों की दीप - लौ में सिंक रही रोटी
पेट की यह नौकरी है ,दीपमाला है
क्यों हँसी को छीन कर इतरा रहे हो तुम ?
आँख में लाली भरी है , दीपमाला है
दुधमुंहों के रक्त में जो स्नान कर आई
रोशनी वह मर्करी है , दीपमाला है
इन पटाखों से जलेगा यह महल ख़ुद ही
आज बागी संतरी है , दीपमाला है
अब सुरंगों में छिपा बारूद जलना है
रोशनी किससे डरी है ! दीपमाला है !!
३
आपकी ये हवेली बड़ी
फुलझडी, फुलझडी, फुलझडी
आपने चुन लिए हार पर
भेंट दीं क्यों हमें हथकडी
आपकी राजधानी सजी
यह गली तो अँधेरी पडी
कुमकुमे , झालरें , रोशनी
हिचकियाँ , आंसुओं की लड़ी
आँख में जल चुके शब्द सब
होंठ पर कील जिनके जड़ी
देखिए , द्वार पर लक्ष्मी
हाथ में राइफल ले खड़ी
भागिए अब किधर जबकि हर
लाश ने तान ली है छड़ी
४
क्या हुआ जो गाँव में घर घर अँधेरा है
सज गई संसद भवन में दीपमाला तो
कुर्सियों की जीवनी में व्यस्त दरबारी
शब्द से चाहे न टूटे बंद ताला तो
आज मेरे स्कूल की छत गिर गई आख़िर
खुल रहीं उनकी विदेशी पाठशाला तो
भील - युवती ने कहा कल ग्राम मुखिया से
मार खाओगे अगर अब हाथ डाला तो
झोंपड़ी पर लिख रहे वे गीत रोमानी
दर्द आंसू पीर सिसकी घाव छाला तो
अब ज़रूरी अक्षरों में आग भरना है
नोंक हो तीखी कलम की तीर भाला तो
:.(स्रोत: तेवरी-१९८२, तरकश-१९९६).:
2 टिप्पणियां:
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
Dhanyawaad ,Bandhu!
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