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रविवार, 12 जून 2011

ये बड़े जो दीखते हैं

ये बड़े जो दीखते हैं
खून से हम सींचते हैं

एक जुगनू छोड़कर वे
यह अँधेरा चीरते हैं

चीख कर दो चार नारे
शून्य मन  को जीतते हैं

एक विप्लव के विपल में
दमन के युग बीतते हैं

संयमी हम ठोकरें खा
नियम द्रोही सीखते हैं.    [118]

6/11/1981 

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हमारे खून-पसीने ही ने तो इन्हें बड़ा बनाया है॥