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गुरुवार, 19 मई 2011

अंबर ने फिर थोपा है तम, आओ दिए जलाएँ

अंबर ने फिर थोपा है तम, आओ दिए जलाएँ
हो प्रकाश का पर्व मनोरम, आओ दिए जलाएँ

आँखों में तेज़ाब ढालकर,  तकुए बहुत पिरोए
अंधी कुटिया में तनिक सनम, आओ दिए जलाएँ

बाँहों के नागों को यारो, वश में करना होगा
डुग्गी वाला आया डमडम, आओ दिए जलाएँ

चुप बैठे हैं लोग यहाँ पर, तेल कान में डाले
खूब पटाखों का हो ऊधम,आओ दिए जलाएँ

साँकल, ताले, लाकर, थैली, लक्ष्मी क़ैद जहाँ भी
मचे मुक्ति का तांडव बम-बम, आओ दिए जलाएँ  [115]

22 अक्टूबर 1981 .

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सांकल, ताले, लाकर.... सभी तोड़ने की कोशिश तो हो रही है पर दुश्मन की साजिश तो कम ताकतवर नहीं है॥