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गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

कीमत है साठ पैसे, अखबार लीजिए

कीमत है साठ पैसे,* अखबार लीजिए
मंडी लुटी है कैसे ,    अखबार लीजिए

गिरती पतंग लूटते जिस तरह से लोग
लुटती है लाज ऐसे,   अखबार लीजिए

अमरीका हो या पाक हो या रूस हो या चीन
भूखे हैं गीध जैसे,      अखबार लीजिए

जूतों से मुक्कों से भिड़ते हैं शराबी
एम पी लड़े हैं वैसे,     अखबार लीजिए

चोरों के हाथ काट दो, लोगों की माँग है
जैसे के साठ तैसे!      अखबार लीजिए   [112]

                                  *16 अक्टूबर,1981 .  

6 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

जूतों और मुक्कों से लड़नेवाले सीन तो आज अधिक देखने को मिलते हैं संसद में :)

केवल राम ने कहा…

गिरती पतंग लूटते जिस तरह से लोग
लुटती है लाज ऐसे, अखबार लीजिए

बहुत गहरे अर्थ संप्रेषित करती भावाव्यक्ति....आपका आभार

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@cmpershad

@ केवल राम

आपको तेवरी के जो अंश पसंद आए, देश का दुर्भाग्य है कि कई दशक से वे ही हमारे सामाजिक-राजनैतिक यथार्थ के पर्याय बने हुए हैं.

स्वीकार करना है कि यह रचना अभ्यास काल की है और शिल्प में कई अपूर्णताएं हैं.फिर भी आप लोगों ने इसे सराहा; यह आपकी सहृदयता है.

Arvind Mishra ने कहा…

अखबार की बिक्री निश्चित ही बढ़ गयी होगी -

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

अमरीका हो या पाक हो या रूस हो या चीन
भूखे हैं गीध जैसे, अखबार लीजिए
जूतों से मुक्कों से भिड़ते हैं शराबी
एम पी लड़े हैं वैसे,अखबार लीजिए...

राजनीतिक परिदृश्य में इन दोनों शेरों की प्रासंगिकता सदा बनी रहेगी...
इस धारदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई.

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@ Arvind Mishra
@Dr (Miss) Sharad Singh

काफी पुरानी रचनाएँ बस इसलिए ब्लॉग पर लगा दी हैं कि डायरी जीर्णपत्र हो चली है. आप सरीखे मित्र पढ़कर सराह रहे हैं, यह अतिरिक्त लाभ है.

स्नेह बना रहे.