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सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

अग्निहोत्र का दीप बरेगा

अग्निहोत्र का दीप बरेगा
ज्वालाओं का मंत्र वरेगा

उगें अधेरे, लेकिन सूरज
नहीं मरा है, नहीं मरेगा

 रीती पड़ी परात धरा की
तपी भगीरथ पुनः भरेगा

राम बटोही सिंहासन तज
वन प्रांतर का वरण करेगा

मूर्छित पड़ी हुई है पीढ़ी
तू ही शब्द-सुधा बरसेगा!        [130]

1/1/1982

2 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अब तो सूरज तले भी अंधेरा दिखाई दे रहा है :(

Vinita Sharma ने कहा…

अछूते प्रतीक ,शब्द और भाव की सुघड़ बुनावट ,ऐसे ही लिखते रहिये