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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2007

लाइये


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

लाइये

धुंध है घर में उजाला लाइये
रोशनी का इक दुशाला  लाइये

केचुओं की भीड़ आँगन में बढ़ी
आदमी अब रीढ़ वाला लाइये

जम गया है मॉम सारी देह में
गर्म फौलादी निवाला लाइये

जूझने का जुल्म से संकल्प दे
आज ऐसी पाठशाला लाइये

(स्रोत: ऋषभ देव शर्मा, तरकश प्रथम संस्करण १९९६, तेवरी प्रकाशन खतौली, पृष्ठ 16)

2 टिप्‍पणियां:

Dr.Kavita Vachaknavee ने कहा…

आप की यह रचना चोरी कर ली गई है,नारद पर रजिस्टर्ड भी करवाया हैकिसी लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी नामक चोर ने। और नारद की अव्यवस्था देखिए कि एक ही चिट्ठे को ३-३ बार पंजीकृत किया हुआ है।तुरंत एक्शन लें।

समीर लाल ने कहा…

बहुत उम्दा रचना. बधाई.