यह समय है झूठ का, अब साँच को मत देख!
देख मत पंचायतों को, जाँच को मत देख!!
नेपथ्य से नाटक चलाता धूर्त निर्देशक;
तू थिरकती पुतलियों के नाच को मत देख!
हाथ उसके की सफाई को पकड़ना है अगर;
तो लहरती उँगलियों के नाच को मत देख!
आग का दरिया तिरेगी, भूमि की बेटी;
तू नज़र उस पार रख, इस आँच को मत देख!
साँस जब तक शेष है, नाचना होगा यहाँ;
पाँव में जो चुभ रहा, उस काँच को मत देख!
19/1/2020
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