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रविवार, 19 दिसंबर 2010

गिर रहा फिर आज पानी


गिर रहा फिर आज पानी 
ठिर रही है राजधानी 

मोड़कर जलधार भारी 
दी डुबो बस्ती पुरानी 

हम हुए बेघर प्रलय में 
बच गए वे खानदानी 

हर तरफ खारा समंदर 
प्यास पानी प्यास पानी 

रक्तजीवी रक्त माँगे 
क्या बुढ़ापा क्या जवानी 

गाँव का सिर काटकर भी 
शहर की कुर्सी बचानी 

बाँधकर पत्थर डुबो दी 
सत्य की अंतिम निशानी 

मृत्यु की लहरें उफनतीं 
जाग री सोई भवानी! [108] 

4/11 /2009 .


10 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हर तरफ खारा समंदर
प्यास पानी प्यास पानी

बढिया अभिव्यक्ति.. अंग्रेज़ी कहावत है- Water Water everywhere
Not a drop to drink!

और हां, यह भी सही है

रक्तजीवी रक्त माँगे
क्या बुढ़ापा क्या जवानी
यह बुढापे में पता चला :)

honesty project democracy ने कहा…

हम हुए बेघर प्रलय में
बच गए ये खानदानी..

अजी काहे का खानदानी .....ये साले खानदानी नहीं इस देश और समाज का खून चूसनेवाले हैं......इनसे अच्छा तो नरपिचास को भी कहा जा सकता है.....इन भ्रष्ट मंत्रियों और उद्योगपतियों को खानदानी नहीं बल्कि अब हर दिल अजीज इंसान कुकर्मी के रूप में इनको हर वक्त याद करता है.....और यही इनके सर्वनाश की शुरुआत है.....

Kamal ने कहा…

ati sundar Rishabh jee ,
vishesh-
Bandh kar patthar dubo dee / saty kee antim nishaani
badhaai

kamal

Anita kumar ने कहा…

बहुत सुंदर रचना। सोई भवानी जगाने के लिए भवानी होनी भी तो चाहिए, वो है कहां?

Word verification takleefdeh hota hai

बेनामी ने कहा…

@cmpershad

''बुढ़ापे में पता चला!''
- पर आप तो जवानों के भी बाप हैं जी.

बेनामी ने कहा…

@honesty project democracy

आपने तो बेचारे ''खानदानी'' को खोल कर धर दिया.

शुक्रिया!!

बेनामी ने कहा…

@anitakumar

प्रशंसा के किए विनम्रतापूर्वक कृतज्ञ हूँ.

वर्ड-वेरिफिकेशन गंदगी से बचने के लिए रखना पड़ा है पूर्वअनुभव से सबक लेकर.

बेनामी ने कहा…

@Kamal

जी शर्मा जी.
इसीलिए तो झूठ और बेशर्मी कुर्सियों पर काबिज़ हैं.

प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

लोकतंत्री भीड़ में जब भाँड़ करता बदजबानी
दे दनादन वोट उसको भेज देते राजधानी

हाय रे कैसी नादानी,
बिक गये ले चाय-पानी?
वाह क्या कह दी कहानी...!!!

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@ siddharth shankar tripathi

निश्चय ही लोकतंत्र की इस भारी विफलता की कुछ न कुछ ज़िम्मेदारी कलमकारों के सिर भी है!

टिप्पणी के लिए आभारी हूँ .